anjan shaheed

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कहो तुम कब आओगे

अब तो पानी में सूरज बुझ चुका

बूढ़ा बरगद चौपाल से कट चुका है

पनघट के प्यासे-चटके होंठों से टपकता लहू

धूल बन गलियों-गलियों भटकता रहा

हवाओं में लगी नफरत की गाँठ खोलने

क्या तुम आओगे


घर में ईंटें कहतीं, दीवारें सुनती है

पगडण्डी पर ख़ामोशी सन्नाटे को आगोश में भींचे सहमी चलती है

चिड़ियाँ भी अब फुसफुसा के बोलती ...हैं

क्या तुम आओगे



1 comments:

Amit said...

nice to find my village at home..........
thanx bro