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कोल्हू का बैल
गायब है कोल्हू से।
गन्ने से गायब है रस।
गुड़ से वो मिठास गायब है
जैसे गायब है बोलचाल से मीठापन

नीम नीचे से चौपाल गायब है।
गायब है हुक्के की गुड़गुड़ाहट
गुड़गुड़ाहट से निकलता
सहकारिता का संगीत गायब है।
लोक से गीत गायब है।

गायब है नुक्कड़ से पनघट।
हवा से गायब है शुध्दता।
गायब हैं कड़ियां छत से।
जमीन से गोबरी गायब है।
मिट्टी से गायब है सोंधापन।

गायब है रोटी और साग से
मिट्टी के चूल्हे की गर्माहट।
चूल्हे पास
परिवार संग मिल-बैठ
खाने का रिवाज गायब है।
उमंग और उल्लास की नदी से
गायब है कागज की नाव।

होने और गायब होने के बीच से
जो गायब नहीं होना चाहिए था
वह सब कुछ गायब है
इसीलिए तो
गांव से गांव गायब है।

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