अन्जान शहीद

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कैसा होगा मेरा गाँव.......
कैसा होगा मेरा गाँव......


क्या आज भी खेतो में सरसों की फूल लहराती होगी
क्या आज भी बारिस में तालाबे भर जाती होगी
क्या मंगरुगंज में हंसी की कलियाँ आज भी खिलती होगी
क्या चाय पकौड़ी के संग जलेबी अब भी मिलती होगी
क्या आज भी पहले जैसा था वैसा होगा मेरा गाँव....                                                    कैसा होगा मेरा गाँव.......
कैसा होगा मेरा गाँव........
बच्चे कूदते होंगे अब भी पेड़ों से तालाबों में
कुछ तो खोये खोये होंगे मोती मोती किताबों में
कुछ उलझे होंगे खेतों की जुताई और बुवाई में
कुछ लोग सोचते होंगे चत पर बैठकर तन्हाई में
अक्सर सोचा करता हूँ ऐसा होगा मेरा गाँव...
कैसा होगा मेरा गों......                                                                                                कैसा होगा मेरा गाँव.....
ज्योति बाल निकेतन और किदवई कॉलेज की यादें
मौलाना आजाद की मस्ती और दोस्तों के वो वादें
अंग्रेजी के मास्टर की समझे न हम बातें
हेड -मास्टर  तो घूम -घूम  कर  कॉलेज  में डंडा घूमाते
उससे  तो अब और भी अच्चा  होगा मेरा गाँव....
कैसा होगा मेरा गाँव.........


भैस  चराने  खेतों में लोग आज भी जाते  तो होंगें
शाम  को  पिताजी  घर  आते  वक़्त  कुछ लाते  तो होंगें
होली  के दिन  कबीरा  गाये  जातें  तो होंगे
ईद  के दिन  मुस्लिम  हिन्दू  को  गले  लगते  तो होंगें 
कंही  ऐसा  तो नहीं  शहरों के जैसा होगा मेरा गाँव...
कैसा होगा मेरा मेरा  गाँव........






















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