अन्जान शहीद में औरंगजेब की हस्तलिखित कुरान शरीफ
First Published:19-09-09 01:56 PM
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के अन्जान शहीद में लगभग 300 वर्ष पुरानी मुगलकाल में लिखी गयी कुरान शरीफ की एक ऐसी दुर्लभ प्रति रखी है, जिसके बारे में इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब ने लिखी थी।
इस दुर्लभ कुरान शरीफ के तीस खंडों में से 26 पर सोने की पालिश है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह मानना है कि औरंगजेब अपने निजी खर्चों के लिए शाही खजाने से खर्च नहीं लेता था और वह टोपी और चटाई बिन कर अपना निजी खर्च चलाता था। इस रूप में औरंगजेब के द्वारा लिखी गई इस कुरानशरीफ एक बहुमूल्य ऐतिहासिक कृति है।
यह कुरान शरीफ आजमगढ़ जिले के सगड़ी तहसील के अन्जान शहीद गांव के मदरसा-ए-दारुल उलूम हुसैनाबाद में सुरक्षित रखी हुई है। ऐतिहासिक महत्व की इस कुरान शरीफ को इतिहासकार मुगल शासक औरगजेब द्वारा हस्तलिखित कुरान मानते हैं जो लगभग 300 वर्ष पूर्व लिखी गयी थी तथा इस कुरान शरीफ की आयतों पर चढ़ी सोने की पॉलिश आज भी पूरी तरह चमचमाती हुई नजर आती है।
जिले में स्थित शिब्ली एकेडमी के पुस्तकालय में बहुत सारी बहुमूल्य और प्राचीन किताबें रखी हैं। वहां रिसर्च से जुड़े़ विशेषज्ञ मौलाना अम्मार रिजवी ने बताया कि उन्होंने इस पुस्तक के एक-एक पन्ने को देखा है और इस कुरान के पन्नों की लिखावट को देखकर लगता है कि यह लगभग 300 वर्ष पुरानी कुरान है और मुगलकाल से जुड़ी हुई है।
मुगल शासकों का इतिहास पढ़ने पर पता चलता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब सरकारी खजाने से अपने उपर खर्च करने के लिए एक भी रुपया नहीं लेते थे, बल्कि अपना खर्च चलाने के लिए वे खाली समय में कुरान शरीफ लिखते थे अथवा टोपी और चटाई बनाते थे तथा उसको बेचकर अपना खर्च चलाते थे।
यह कुरान अन्जान शहीद के मदरसे में कैसे आयी इसकी भी एक दिलचस्प दास्तां है। इस कुरान को एक 60 वर्षीय व्यक्ति ने सन 1957 में इस मदरसे के मुतवल्ली मौलाना अब्दुलहई चिश्ती को लाकर दिया। मौलाना अब्दुलहई चिश्ती के पौत्र अब्दुल तौब्वाब चिश्ती के मुताबिक उस व्यक्ति ने कुरान के बारे में बस इतना बताया कि वह चोर था और जवानी में चोरी करता था। एक जगह उसने चोरी के दौरान संदूक में मुहर, जेवरात और इस कुरान को पाया। बहुत दिनों तक तो वह यह नहीं समक्ष पाया कि इस कुरान का क्या करे। इसके बाद उसने आजमगढ़ के अन्जान शहीद के दारुल उलुम हुसैना को यह कुरान दे दी।
मदरसे के वर्तमान मुतवली अब्दुल मन्नान चिश्ती बताते है कि हालांकि इस बहुमूल्य कुरान के रखने की व्यवस्था इस मदरसे की लाइब्रेरी में नहीं है। इसमें अब कीड़े भी लग रहे हैं। बाहर की लाइब्रेरी वाले इसको मांग रहे हैं, लेकिन इस लाइब्रेरी की शान और जान इस कुरान को किसी को भी नहीं दिया जायेगा, क्योंकि इस पर मेरा कोई अधिकार ही नही है बल्कि यह मेरे वालिद की निशानी भी है।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के अन्जान शहीद में लगभग 300 वर्ष पुरानी मुगलकाल में लिखी गयी कुरान शरीफ की एक ऐसी दुर्लभ प्रति रखी है, जिसके बारे में इतिहासकारों का मानना है कि औरंगजेब ने लिखी थी।
इस दुर्लभ कुरान शरीफ के तीस खंडों में से 26 पर सोने की पालिश है। ऐतिहासिक दृष्टि से यह मानना है कि औरंगजेब अपने निजी खर्चों के लिए शाही खजाने से खर्च नहीं लेता था और वह टोपी और चटाई बिन कर अपना निजी खर्च चलाता था। इस रूप में औरंगजेब के द्वारा लिखी गई इस कुरानशरीफ एक बहुमूल्य ऐतिहासिक कृति है।
यह कुरान शरीफ आजमगढ़ जिले के सगड़ी तहसील के अन्जान शहीद गांव के मदरसा-ए-दारुल उलूम हुसैनाबाद में सुरक्षित रखी हुई है। ऐतिहासिक महत्व की इस कुरान शरीफ को इतिहासकार मुगल शासक औरगजेब द्वारा हस्तलिखित कुरान मानते हैं जो लगभग 300 वर्ष पूर्व लिखी गयी थी तथा इस कुरान शरीफ की आयतों पर चढ़ी सोने की पॉलिश आज भी पूरी तरह चमचमाती हुई नजर आती है।
जिले में स्थित शिब्ली एकेडमी के पुस्तकालय में बहुत सारी बहुमूल्य और प्राचीन किताबें रखी हैं। वहां रिसर्च से जुड़े़ विशेषज्ञ मौलाना अम्मार रिजवी ने बताया कि उन्होंने इस पुस्तक के एक-एक पन्ने को देखा है और इस कुरान के पन्नों की लिखावट को देखकर लगता है कि यह लगभग 300 वर्ष पुरानी कुरान है और मुगलकाल से जुड़ी हुई है।
मुगल शासकों का इतिहास पढ़ने पर पता चलता है कि मुगल बादशाह औरंगजेब सरकारी खजाने से अपने उपर खर्च करने के लिए एक भी रुपया नहीं लेते थे, बल्कि अपना खर्च चलाने के लिए वे खाली समय में कुरान शरीफ लिखते थे अथवा टोपी और चटाई बनाते थे तथा उसको बेचकर अपना खर्च चलाते थे।
यह कुरान अन्जान शहीद के मदरसे में कैसे आयी इसकी भी एक दिलचस्प दास्तां है। इस कुरान को एक 60 वर्षीय व्यक्ति ने सन 1957 में इस मदरसे के मुतवल्ली मौलाना अब्दुलहई चिश्ती को लाकर दिया। मौलाना अब्दुलहई चिश्ती के पौत्र अब्दुल तौब्वाब चिश्ती के मुताबिक उस व्यक्ति ने कुरान के बारे में बस इतना बताया कि वह चोर था और जवानी में चोरी करता था। एक जगह उसने चोरी के दौरान संदूक में मुहर, जेवरात और इस कुरान को पाया। बहुत दिनों तक तो वह यह नहीं समक्ष पाया कि इस कुरान का क्या करे। इसके बाद उसने आजमगढ़ के अन्जान शहीद के दारुल उलुम हुसैना को यह कुरान दे दी।
मदरसे के वर्तमान मुतवली अब्दुल मन्नान चिश्ती बताते है कि हालांकि इस बहुमूल्य कुरान के रखने की व्यवस्था इस मदरसे की लाइब्रेरी में नहीं है। इसमें अब कीड़े भी लग रहे हैं। बाहर की लाइब्रेरी वाले इसको मांग रहे हैं, लेकिन इस लाइब्रेरी की शान और जान इस कुरान को किसी को भी नहीं दिया जायेगा, क्योंकि इस पर मेरा कोई अधिकार ही नही है बल्कि यह मेरे वालिद की निशानी भी है।