जिन्दगी आजकल थका थका सा लगता हूँ
मै क्यूँ खुदी से खफा खफा सा लगता हूँ
जिन्दगी आजकल थका थका सा लगता हूँ
कुछ पाने की उम्मीद , हुई है इस कदर
इन दिनों रात में जगा जगा सा लगता हूँ
ओ मेरे सामने वफ़ा की बात नहीं करते
सुना है उनको मै इक आइना सा लगता हूँ
फर्क है सोच का, समझ का, नजरिये का
किसी को पत्थर किसी को खुदा सा लगता हूँ
तेरी आँखों में ओ कशिश दिखाई नहीं देती
निगाह में रहके भी जुदा जुदा सा लगता हूँ
जब से उसने हमें तमगा दिया हरजाई का
खुद की नज़र में मै गिरा गिरा सा लगता हूँ
रात में चुपके से कह गया एक शैतान मुझसे
अब मैं इन्सान से डरा डरा सा लगता हूँ
कल मेरे दादा मेरी दादी से कह रहे थे "अमित "
तुम जब हसती हो तो मै नौजवां सा लगता हूँ