तुम्हारा सूरज
अच्छा सुनो, वो सूरज पूछ रहा था था तुम्हें..कौन सूरज !...भूल गयी..तुम भी ना..याद करो जब तुम नहाने के बाद आदतन छत पर बाल सुखाने आ जाती और तुम्हारी मां नीचे से बांग देती"चिलचिलाती धूप में खम्भे नोच रही है क्या .नीचे आ जा, बदन काले पड़ जायेंगें ".. और तुम, सामने वाली छत पर टकटकी लगाये उनींदी पलकों की अरगनी पर सीली सीली सी ख़्वाहिशों को फैलाते जाती और खुद ब खुद कह जाती "आज छत पर सूरज नजर नहीं आ रहा मां ..बाल सूखने में थोडा वक्त तो लगेगा ही."..अंदाजे बयां का खुबसूरत हुनर आता था तुम्हें..तुम्हारी मां तो उस 149,600,000 किलोमीटर दूर वाले सूरज को ताने देते फिरती..उन्हें क्या पता, एक सूरज ठीक सामने वाली छत पर भी रहता है जिसके आने के एहसासात से ही उसके बालों में सिमटा गीलापन हवाओं से पनाह मांगने लगता..क्या अब भी पूछोगी "कौन सूरज ?". अगर हाँ तो इतना ही कहूँगा "तुम्हारा सूरज"
(लिखी जा रही एक कहानी से)