हंसी
याद है उस दिन जब रिहायसी तालाब की सीढ़ियों पर मैं गुमसुम बैठा था...सुबह की नर्म धूप मौसम को गुदगुदा रही थी...शायद तुम स्कूल जा रही थी..उदास देखा तो ठहर गयी..पत्थर उठाकर खामोश तालाब से छेड़खानी करने लगी...याद आया तुम्हें..ज़माने की रुसवाईयों से बचने का अच्छा बहाना था..एक और पत्थर उठाने पास आयी थी तुम और हौले से कह गयी थी "हंसते रहा करो आप..हंसते हुए अच्छे लगते हो". आज जब "सन ऑफ़ सरदार" के ट्रेलर में ये सुना तो तुम्हारी यादों के चंद परिंदे जेहनी मुंडेर पर बैठ गुटर गुं करने लगे .. ज़िन्दगी के कैनवास पर लम्हों के कई रंग आकार लेने लगें ... जुस्तजू गहरी सिसकीयाँ लेते हए रोने लगी थी.. लेकिन जाने क्यूँ गालों पर अश्कों की नमी महसूस नहीं हुई..शायद ज़ज्ब हो गए हैं आँखों में...पता है, उस दिन के बाद से ज़िन्दगी का जितना अरसा गुजरा, मैं रोया कम और हंसा ज्यादा...तुमसे वादा जो किया था..