रोमांस का जादूगर और तुम


क्या लिखूं..शब्द खामोश हैं आज..रोमंटिक अरगनी पर बेलौस मोहब्बत की मुख्तलिफ लिबास को हवा देने वाला शख्स आज हमारे बीच नहीं रहा..कहने को बहुत है. लिखने को बहुत है..लेकिन आज न तो कुछ कह पा रहा हूँ और न कुछ लिख पा रहा हूँ ..बस आज एक राज़ की बात बताऊंगा तुम्हें..याद है जब तुम एक बार रूठी थी और तुम्हारा गुस्सा आदतन खाने पर ही फूटा था ...रात के नौ बज रहे थे शायद..तुम्हें पता चला कि जब से तुमने अन्न जल से तौबा की है तब से हमने भी उससे दुश्मनी कर ली है...तुम्हारी आँखों में नज्मी प्यार की चंद कश्तियाँ तैरने लगी थी...उस रात बदन खुजलाते कुत्तों और नफरतों की मुरीद इंसानी नज़रो से बच बचाकर तुम घर से पराठा लेकर आयी..कोहनी से मारकर जगाया था तुमने और मैं सकपकाते हुए उठा गया था.. कुछ बोला नहीं तुमने..बस तुम्हारे उँगलियों में फंसा पराठा मेरे मुख में बरबस ही चले गए..पता है ओ "भूखा रहने वाला" आइडिया कहाँ से चुराया था..रोमांस के जादूगर की सबसे खुबसूरत फिल्म "दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे " से...दो दिलों की आपसी गुफ्तगू और मिलाप के जितने मुख्तलिफ रूप यश जी ने हिंदी सिनेमा को दिया , शायद किसी और फिल्मकार ने नहीं..बालिग़ उम्र में जाने कितनों को यश जी ने मुहब्बत में डूबना सिखाया..आज बस इतना ही कहूँगा "हिंदी सिनेमा की किताब से रोमांस का जिल्द अलग हो गया. अलविदा