"तुम" कौन हो


"तुम" मशहूर होती जा रही हो धीरे धीरे...बाई गॉड, कुछ फेसबुकिया दोस्तों ने मैसेज किया था..पूछ रहे थे ये "तुम" कौन है..क्या कहूँ उनसे...क्या ये कहूँ कि "तुम" एक कल्पना हो जो हकीक़त नहीं बन सकी या हकीक़त हो जो फ़साने में तब्दील न हो सकी... या फिर ये कहूँ कि तुम उबलते ज़ेहन की वो आरज़ू हो जो चुप- चाप रिसती जा रही है..इसी बीच कभी कभी जाने क्यूँ लगता है कि तुम दर्द का वह टुकड़ा हो जो आँखों की नमी को बरबस ही आँसू की शक्ल देना चाहती हो....खैर जवाब मिल जाय तो जरुर बताना...आखिर मुझे भी तो जानना है कि "तुम" कौन हो?
वैसे जब जब ये सवाल उठता है तो हिमांशु पाण्डेय की एक कविता जेहनी मुंडेर पर आकर ठिठक जाती है..
तुम कौन हो?
जिसने यौवन का विराट आकाश
समेट लिया है अपनी बाहों में
जिसने अपनी चितवन की प्रेरणा से
ठहरा दिया है सांसारिक गति को

तुम कौन हो?
जिसने सौभाग्य की कुंकुमी सजावट
कर दी है मेरे माथे पर
जिसने मंत्रमुग्ध कर दिया है जगत को
कल-कण्ठ की ऋचाओं से

तुम कौन हो?
जिसने मेरी श्वांस-वेणु बजा दी है और
लय हो गयी है चेतना में उसकी माधुरी
जिसने अपने हृदय के कंपनों से भर दिये हैं
मेरे प्राण कँप गयी है अनुभूति

तुम कौन हो?
आखिर कौन हो तुम?
कि तुम्हारे सम्मुख
प्रणय की पलकें काँप रही हैं
और मैं विलीन होना चाह रहा हूँ
तुममें ।